पदोन्नति में आरक्षण: इंदिरा साहनी से जरनैल सिंह तक के प्रमुख न्यायिक फैसले। पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मामलें। Current affairs 2024
पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मामलें
पदोन्नति में आरक्षण: इंदिरा साहनी से जरनैल सिंह तक के प्रमुख न्यायिक फैसले
इंद्रा साहनीनिर्णय (1992)
●उच्चतम न्यायालय की 9 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया कि संविधान का अनुच्छेद 16(4) जो नियुक्तियों में आरक्षण की अनुमति देता है, लेकिन पदोन्नति में आरक्षण की अनुमत्ति नहीं देता है।
77वाँ संशोधन अधिनियम (1995)
● वर्ष 1995 में सरकार ने 77वाँ संशोधन पारित करके इंद्रा साहनी के निर्णय को रद्द कर दिया। इसमें अनुच्छेद 16 (4A) जोड़ा गया, जिससे राज्यों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों के लिए पदोन्नति के मामले में आरक्षण (यदि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है) देने की अनुमति मिल गई।
अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1996)
●पदोन्नति के कारण उत्पन्न विसंगतियों को दूर करना, जिनके कारण आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों से वरिष्ठ हो जाते हैं।
●इस विसंगति को दो निर्णयों वीरपाल सिंह (1995) और अजीत सिंह (1996) द्वारा दूर किया गया, जिसमें कैच-अप नियम की अवधारणा पेश की गई।
●नियम के अनुसार, जिन वरिष्ठ सामान्य अभ्यर्थियों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अभ्यर्थियों के बाद पदोन्नत किया गया था, उन्हें पहले पदोव्रत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अभ्यर्थियों पर पुनः वरिष्ठता प्राप्त हो जाएगी।
81वाँ संशोधन अधिनियम (2000)
●81वें संशोधन में अनुच्छेद 16 (4B) को शामिल किया गया, जिसके तहत पदोन्नति में आरक्षण को नियमित आरक्षण पर निर्धारित 50% की अधिकतम सीमा को पार करने की अनुमतिदी गई तथा कैरी फॉरवर्ड (Carry Forward) के नियम के तहत राज्यों को रिक्त पदों को आगे बढ़ाने की अनुमति दी गई।
82वाँ संशोधन अधिनियम (2000)
●82 वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 335 में एक प्रावधान जोड़ा गया, जिसके तहत पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अर्हक अंकों में छूट की अनुमति दी गई तथा इसने वर्ष 1996 के विनोद कुमार निर्णय को पलट दिया, जिसमें पदोत्रति में आरक्षण के मामलों में अर्हक अंकों में छूट के विरुद्ध स्पष्ट रूप से निर्णय दिया गया था।
85वाँ संशोधन अधिनियम (2001)
●85 वें संशोधन के माध्यम से, संसद ने अनुच्छेद 16 (4A) में संशोधन किया और पदोन्नत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए कैच-अप नियम को परिणामी वरिष्ठता से बदल दिया।
● परिणामी वरिष्ठता से तात्पर्य आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को दी जाने वाली वरिष्ठता से है, जिन्हें आरक्षण नीतियों के आधार पर पदोन्नत किया जाता है।
एम. नागराजनिर्णय (2006)
●उच्चतम न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण को बरकरार रखा, लेकिन राज्यों को अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देने के लिए निस्र तीन शर्तें (पिछड़ेपन का प्रमाण, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और समय दक्षता बनाए रखना) रखीं।
जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता (2018)
●उच्चतम न्यायालय ने एम. नागराज निर्णय (2006) को बरकरार रखा, लेकिन पिछड़ेपन के प्रमाण के मानदंड को हटा दिया और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए 'क्रीमी लेयर बहिष्करण की व्यवस्था लागू की।
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